जवाहरलाल नेहरू विश्वविद्यालय (जेएनयू) छात्र संघ के अध्यक्ष कन्हैया कुमार को दिल्ली हाईकोर्ट ने अंतरिम जमानत दे दी है। २९ फ़रवरी को जमानत पर हुई बहस के बाद कोर्ट ने अपना फैसला सुरक्षित रख लिया था। कन्हैया को १२ फ़रवरी को दिल्ली पुलिस ने कथित तौर पर भारत विरोधी नारे लगाने पर गिरफ़्तार किया था। फिलहाल छह महीने की अंतरिम ज़मानत मिली है। जमानत के बाद कन्हैया के परिजनों ने कहा कि उन्हें संविधान और कोर्ट पर पूरा भरोसा है। आरोप है कि संघ और बीजेपी वालों ने साजिश रच कर इसके कैरियर को ख़राब करने की कोशिश की है। क्योंकि कन्हैया वामपंथी विचारधारा का है, ग़रीब है और बिहार से आता है। इसीलिए उसे तबाह करने के लिए साजिश रची गई। जानकार बताते हैं कि कन्हैया के अंतरिम जमानत के बाद देशद्रोह कानून पर छिड़ी बहस और तेज होगी। कुछ का कहना है कि सत्ताधारी दल बीजेपी सरकार की आलोचना को देशद्रोह बताने की कोशिश कर रही है। वहीं दूसरी ओर, संविधान के जानकार कहते हैं कि सरकार की आलोचना देशद्रोह नहीं है। पाकिस्तान जिंदाबाद के नारे लगाना भी देशद्रोह नहीं है, लेकिन भारत के टुक़ड़े होंगे जैसे नारे देशद्रोह की श्रेणी में आते हैं। बिना शिकायत व शुरुआती रिपोर्ट के बाद भी देशद्रोह का मामला दर्ज हो सकता है, लेकिन इसे साबित करने के लिए पुलिस को सारे सबूत जुटाने होंगे। तमाम विवादों-आरोपों के बीच देशद्रोह कानून को लेकर ही सवाल उठने लगे हैं।इस पर विवाद के बाद केंद्र सरकार देशद्रोह कानून में संशोधन का मन बना रही है। पिछले दिनों गृहमंत्री राजनाथ सिंह ने लोकसभा में बताया कि लॉ कमीशन देशद्रोह कानून की फिर से समीक्षा करते हुए इसमें जरूरी संशोधन करेगी। ऐसा माना जाता है कि अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता के आड़ में कई बार लोग संविधान की सीमाओं से बाहर लोंगों को भड़काते करते हैं। मार्च २०१५ में सुप्रीम कोर्ट ने कहा था कि संवैधानिक सीमाओं के बाहर लिखी गई बातों के लिए उचित कार्रवाई हो सकती है।
गौरतलब है कि देशद्रोह के केस में गिरफ्तार होने वाले लोंगों की फेहरिस्त लंबी है। कन्हैया के अलावा हाल ही में गुजरात में पाटीदारों के लिए आरक्षण की मांग करते हुए हिंसक आंदोलन शुरू करने वाले हार्दिक पटेल को भी अक्टूबर २०१५ में गुजरात पुलिस की ओर से देशद्रोह के मामले के तहत गिरफ्तार किया गया था। इससे पूर्व सितंबर २०१२ में कार्टूनिस्ट असीम त्रिवेदी को भ्रष्टाचार विरोधी आंदोलन के समय साइट पर संविधान से जुड़ी तस्वीरें पोस्ट करने की वजह से इसी आरोप में गिरफ्तार में किया गया था। बाद में उनके ऊपर से देशद्रोह का आरोप हटा लिया गया। २००७ में को विनायक सेन पर नक्सल विचारधारा को फैलाने के आरोप में देशद्रोह का मामला दर्ज कर आजीवन कारावास की सजा सुनाई गई थी, लेकिन सुप्रीम कोर्ट के आदेश पर जमानत मिल गई। २०१० में अरुंधति रॉय व हुर्रियत नेता सैयद अली शाह गिलानी पर देशद्रोह के तहत मुकदमा दर्ज किया गया था।आंकड़ों के अनुसार २०१४ में देशद्रोह के ४७ मामले दर्ज किए गए जिसमें ७२ फीसदी मामले सिर्फ बिहार-झारखंड में है। इनमें सर्वाधिक झारखंड में १८ व बिहार में १६ मामले हैं। इसके अलावा केरल में ५ और उड़ीसा-पश्चिम बंगाल में २-२ मामले है। जेएनयू की घटना के बाद देशद्रोह कानून पर सवाल उठने लगे हैं।
जानकार बताते हैं कि विश्व में जहां भी लोकतंत्र है वहां छात्रों के इस तरह के आंदोलन होते रहे हैं। बताते हैं कि १८६० में बना देशद्रोह की धारा आईपीसी १२४ए को १८७० में इसे आईपीसी में शामिल कर दिया गया। जाहिर है अंग्रेजों ने उनकी हुकूमत के खिलाफ लड़ने वाले भारतीय स्वतंत्रता सेनानियों को जेल में डालने के लिए यह कानून बनाया था। १८९८ में मैकॉले दंड संहिता के तहत देशद्रोह का मतलब था, ऐसा कोई भी काम जिससे सरकार के खिलाफ असंतोष जाहिर होता हो लेकिन १९४२ में भारत छोड़ो आंदोलन के दौरान इस परिभाषा में बदलाव हुआ, जिसके तहत सिर्फ सरकार के खिलाफ असंतोष को देशद्रोह नहीं माना जा सकता। इसे तब देशद्रोह माना जाएगा जब असंतोष के साथ हिंसा भड़काने और व्यवस्था बिगाड़ने की अपील की जाए। १२४ए के तहत लिखित या मौखिक शब्दों, चिन्हों, प्रत्यक्ष या अप्रत्यक्ष तौर पर नफरत फैलाने या असंतोष जाहिर करने पर देशद्रोह दर्ज हो सकता है।
दो मार्च को दिल्ली हाईकोर्ट की जज प्रतिभा रानी ने कन्हैया कुमार को अंतरिम जमानत देते वक्त देशभक्ति और जेएनयू को लेकर बेहद संजीदा टिप्पणी की। कहा कि इस बसंत में शांति का रंग जेएनयू जैसे प्रतिष्ठित यूनिवर्सिटी से खत्म हो रहा है। इसका जवाब वहां के छात्रों, शिक्षकों और जेएनयू का कार्यभार संभालने वाले लोगों को देना पड़ेगा। जेएनयू को चाहिए कि वो अपने छात्रों को सही रास्ते पर लाए ताकि वो देश के विकास में अपनी भूमिका निभा सकें और जिस मकसद से जेएनयू का निर्माण किया गया था उस मकसद को पूरा कर सकें। इस तरह के नारों को मौलिक अधिकार नहीं माना जा सकता। छात्रों में एक तरह का इंफेक्शन फैल रहा है, इसे बीमारी बनने से पहले रोकना होगा। कोर्ट के पुलिस से ये पूछने पर कि क्या उनके पास कन्हैया के ख़िलाफ़ कोई सीसीटीवी फ़ुटेज या अन्य सबूत है, दिल्ली पुलिस ने कहा कि वीडियो में कन्हैया नारे लगाते हुए नहीं दिख रहे हैं। वहीं चर्चित वकील कपिल सिब्बल ने एक टीवी वीडियो के आधार पर एफ़आईआर दर्ज करने की दिल्ली पुलिस की कार्रवाई पर भी सवाल उठाए। कहा कि कन्हैया और अन्य छात्रों के ख़िलाफ़ एफ़आईआर उसी दिन क्यों नहीं दर्ज हुए, जबकि वहां सादे कपड़े में पुलिसकर्मी तैनात थे और घटना के चश्मदीद थे।
कपिल सिब्बल ने कहा कि जेएनयू में भारत विरोधी नारे लगाने वाले नकाबपोश लोग थे। इसके अलावा इस मामले पर दिल्ली सरकार की भी एक रिपोर्ट सामने आई है, जिसमें कन्हैया और उमर खालिद को क्लीन चिट है जबकि अनिर्बान और आशुतोष को अफजल के समर्थन में नारे लगाने का दोषी बताया गया है। रिपोर्ट में जेएनयू के सुरक्षाकर्मियों द्वारा बनाई गई फुटेज का हवाला देकर कहा गया है कि कश्मीर के आत्मनिर्णय का समर्थन करने वाले कार्यक्रम के मुख्य आयोजक उमर खालिद ने जो नारे लगाए उनमें कहा गया है- 'कश्मीर की जनता संघर्ष करो, हम तुम्हारे साथ हैं।' उमर के साथी अनिर्बान और आशुतोष की आवाज पहचानने का दावा करने वाले सिक्योरिटी स्टाफ का कहना है कि उन्होंने 'अफजल की हत्या नहीं सहेंगे' के नारे लगाए थे।कैंपस में कार्यक्रम के दौरान मीडिया की उपस्थिति पर कहा गया कि रजिस्टर में दर्ज एंट्री से पता लगता है कि अभाविप के एक छात्रनेता ने शाम तकरीबन ५.२० बजे एक न्यूज चैनल की टीम को बुलाया था। चैनल की टीम विवि प्रशासन की इजाजत के बिना कैंपस में आई थी।
इसी चैनल के न्यूज दिखाने पर पुलिस ने इस वीडियो की कॉपी लेकर मामला दर्ज किया था। दिल्ली सरकार की रिपोर्ट में है कि एफआईआर में पुलिस ने वीडियो का हवाला देकर कहा था कि कुछ लोगों ने उमर खालिद के नेतृत्व में राष्ट्र विरोधी नारे लगाए। पुलिस अफसरों ने भी 'पाकिस्तान जिंदाबाद' के नारे लगाने पर संदेह जताया है। साथ ही उन्होंने इस बात की पुष्टि भी नहीं की है कि ये नारे किसने लगाए। जांच के दायरे में आई सात में से तीन वीडियो एडिटेड मिली हैं। जबकि दो में खास तौर पर अल्फाज चिपकाए गए हैं। दिल्ली सरकार की फोरेंसिक रिपोर्ट में खुलासा हुआ है कि नारे लगाने वाले डॉक्टर्ड वीडियो शिल्पी तिवारी के एक ट्वीटर अकाउंट से होस्ट हुआ था। सूत्रों का कहना है कि शिल्पी तिवारी केन्द्रीय मानव संसाधन विकास मंत्री स्मृति ईरानी की नजदीकी हैं। हालांकि इस पूरे मामले में मानव संसाधन मंत्रालय ने खुद को अलग कर लिया है। बहरहाल, देखना है कि कन्हैया को देशद्रोह के झूठे मामले में फंसाने वालों पर कोई कार्रवाई होती है या नहीं?
संपर्कः राजीव रंजन तिवारी, द्वारा- श्री आरपी मिश्र, ८१-एम, कृष्णा भवन, सहयोग विहार, धरमपुर, गोरखपुर (उत्तर प्रदेश), पिन- २७३००६. फोन- ०८९२२००२००३.