यदि आपने 'एयरलिफ्ट' फिल्म देखी है तो आपके लिए ये समझना आसान है कि रणजीत किसी देश को नहीं, लोगों को बचा रहा था। राष्ट्र के लिए प्रेम कभी मानवता के बिना नहीं आ सकता। जवाहरलाल नेहरू विश्वविद्यालय (जेएनयू) में जो घटनाक्रम चल रहा है, धीरे-धीरे उसकी असलियत सामने आएगी, लेकिन उस घटना के बाद इलेक्ट्रानिक मीडिया ने जिस तरह से लोगों को भड़काने का काम किया, वह दुर्भाग्यपूर्ण है। पूरे प्रकरण में कुछ निजी चैनलों का वीभत्स चेहरा सामने आया है, जो लोगों को उद्वेलित करने के साथ-साथ डरा भी रहा है। यूं कहें कि लोकतंत्र का चौथा स्तंभ कहा जाने वाला मीडिया लोकतांत्रिक मूल्यों को कुचलने के कुचक्र में भी भागीदार रहा है। वरना, बिना किसी ठोस प्रमाण के कुछ चैनल जेएनयू छात्र संघ अध्यक्ष कन्हैया कुमार को देशद्रोही और आतंकवादी नहीं बताते। ९ फरवरी की जिस घटना की फुटेज चैनलों में दिखाई जा रही है, वह अलग-अलग है। इसलिए यह कह पाना जल्दबाजी होगी कि कौन वीडियो सही है, जिस आधार पर कन्हैया को अपराधी घोषित किया गया है।
बेशक, देश के किसी भी कोने में हुई देशद्रोही गतिविधियों को कोई बर्दाश्त नहीं कर सकता, लेकिन फर्जी आरोप के आधार पर किसी नौजवान को देशद्रोही करार देना भी अलोकतांत्रिक है। दरअसल, देशप्रेम को समझने की जरूरत है। प्रेम कोई भी हो, महसूस होने की चीज़ है। मारपीट कर महसूस नहीं कराया जा सकता। यदि आप ऐसा करते हैं तो आप किसी कुंठा के शिकार हैं। भारत के संविधान की प्रस्तावना में कुछ शब्द हैं कि हम समाजवादी हैं, हम धर्मनिरपेक्ष हैं, हम लोकतांत्रिक हैं। समझिए कि इनमें से किसी भी बात को गाली देने वाला राष्ट्र का अपमान कर रहा है। अपने देश में न्याय और बराबरी के लिए लड़िये और अच्छे नागरिक के फ़र्ज़ पूरे करिये, संविधान में लिखे गए कर्तव्यों को निभाइए। कोई भारत की जय नहीं बोले तो उसके खिलाफ कार्रवाई नहीं हो सकती। किसी से मारपीट करने पर आप कानूनन दोषी होते हैं। ऐसा करके आप राष्ट्र का अपमान कर रहे हैं।जेएनयू की घटना को जिस तरह से टीवी चैनलों में कवर किया गया है उसे आप अपने-अपने दल की पसंद की हिसाब से मत देखिये। उसे आप समाज और संतुलित समझ की प्रक्रिया के हिसाब से देखिये। यह सुझाव पिछले दिनों अपने टीवी स्कीन को काला कर जाने-माने पत्रकार रविश कुमार ने दिए। उन्होंने जेएनयू प्रकरण में मीडिया के फुटेज की अपने अंदाज में आलोचना की। उनकी बातें काफी हद तक सही प्रतीत हो रही है। ऐसा क्यों हैं कि एंकरों का चीखना बिल्कुल ऐसा ही लगता है।
प्रवक्ता भी एंकरों की तरह धमका रहे हैं। सवाल कहीं छूट जाता है। जवाब की किसी को परवाह नहीं होती। मारो-मारो, पकड़ो-पकड़ो की आवाज़ आने लगती है। क्या टीवी को हम इतनी छूट देंगे कि एंकर हमें बताने की जगह धमकाने लगे। हममें से कुछ को छांट कर भीड़ बनाने लगे और उस भीड़ को ललकारने लगे कि जाओ उसे खींच कर मार दो। एंकर भीड़ को उकसाता है। यदि आपको लगता है कि आपके बदले चीख कर वो ठीक कर रहा है। दरअसल, वो ठीक नहीं कर रहा है। एंकर रोज़ भाषण झाड़ रहे हैं। वो देशभक्ति के प्रवक्ता हो गए हैं। कश्मीर में रोज़ाना भारत विरोधी नारे लगते हैं। कश्मीर में पिछले एक साल में पीडीपी बीजेपी सरकार ने क्या भारत विरोधी नारे लगाने वालों को गिरफ्तार किया है। हां तो उनकी संख्या क्या है। वहां तो आए दिन कोई पाकिस्तान के झंडे दिखा देता है, कोई आतंकवादी संगठन आईएस के भी। कश्मीर की समस्या की अपनी जटिलता है। पीडीपी अफज़ल गुरु को शहीद मानती है। पीडीपी ने अभी तक नहीं कहा कि अफज़ल गुरु वही है जो बीजेपी कहती है यानी आतंकवादी है। इसके बाद भी बीजेपी पीडीपी को अपनी सरकार का मुखिया चुनती है। बीजेपी ने कश्मीर में जो किया वो एक शानदार राजनीतिक प्रयोग है। उसके लिए बीजेपी ने अपने राजनीतिक सिद्धांतों को कुछ समय के लिए छोड़ा, उसे लेकर सवाल होते रहेंगे। अफज़ल गुरु अगर जेएनयू में आतंकी है तो श्रीनगर में क्या है।
अब गुस्सा देशभक्ति के भाव में या देशद्रोह कहकर हैदराबाद यूनिवर्सिटी से लेकर जेएनयू तक में निकल रहा है। उसको देखने का नजरिया चाह कर भी छात्रों के साथ नहीं जुड़ेगा। सवाल राजनीतिक तौर पर उठेंगे। हैदराबाद यूनिवर्सिटी के आईने में दलित का सवाल सियासी वोट बैंक तलाशेगा। जेएनयू के जरिये लेफ्ट को देशद्रोही करार देते हुये बंगाल और केरल में राजनीतिक जमीन तलाशने के सवाल उठेंगे। इतिहास के पन्नो को पलटेंगे तो मौजूदा वक्त इतिहास पर भारी पड़ता नजर आयेगा और राजद्रोह भी सियासत के लिये राजनीतिक हथियार बनकर ही उभरेगा। इसी दौर में अंरुधति से लेकर विनायक सेन और असीम त्रिवेदी से लेकर उदय कुमार तक पर देशद्रोह के आरोप लगे। हार्दिक पटेल पर देशद्रोह के आरोप लगे, अब कन्हैया कुमार पर। लेकिन उंची अदालत में कोई मामला टिक नहीं पाया लेकिन राजनीति खूब हुई। जबिक आजादी के बाद महात्मा गांधी से लेकर नेहरु तक ने राजद्रोह यानी आईपीसी के सेक्शन १२४ ए को खत्म करने की खुली वकालत की थी। आजाद देश के नागरिको पर कैसे राजद्रोह लगाया जा सकता है। खैर, हम चर्चा न्यूज चैनलों की कर रहे हैं। लगता है कि चैनलों की दुनिया में हर नियम धाराशायी हो गए हैं। पहले सिखाया गया था कि जो भड़काने की बात करे, उकसाने की बात करे, सामाजिक द्वेष की बात करे उसका बयान न दिखाना है न छापना है। अब क्या करेंगे जब एंकर ही इस तरह की बात कर रहे हैं। कन्हैया के भाषण के वीडियो को चैनलों ने खतरनाक तरीके से चलाया। बिना जांच किये कि कौन सा वीडियो सही है, उसे चलाया गया। अब टीवी टुडे और एबीपी चैनल ने बताया है कि वीडियो फर्ज़ी हैं। कुछ वीडियों में कांट छांट है तो किसी में ऊपर से नारों को थोपा गया है। क्या अब चैनल उन वीडियो की जवाबदेही लेते हुए चीख चीख कर बतायेंगे कि वीडियो सही नहीं थे।
जानकारों का कहना है कि जो लोग यह मान रहे हैं कि महज दस लड़कों के कुछ नासमझी भरे नारों के लिए जेएनयू को बदनाम किया जा रहा है, वे एक भूल कर रहे हैं। यह जेएनयू से ज्यादा जेएनयू की अवधारणा है जो बीजेपी, संघ परिवार और दक्षिणपंथी विचारधारा को स्वीकार्य नहीं है। जेएनयू के बहाने देशभक्ति और देशद्रोह पर छिड़ी बहस के अलग-अलग पक्षों को देखें तो बात समझ में आ जाएगी। मसलन जो लोग जेएनयू के नारों का विरोध कर रहे हैं, वे हैदराबाद यूनिवर्सिटी में रोहित वेमुला की ख़ुदकुशी से भी आंख मिलाने को तैयार नहीं हैं। जो लोग जेएनयू को देशद्रोहियों का अड्डा बता रहे हैं, वे मूलतः आरक्षण विरोधी और उदारीकरण के समर्थक तत्व हैं। जो लोग मानते हैं कि जेएनयू आज़ादी के नाम पर अराजकता फैला रहा है, वे स्त्री की बराबरी और आज़ादी के भी ख़िलाफ़ खड़े लोग हैं। ये वही लोग हैं जिन्हें दलितों का, पिछड़ों का, अल्पसंख्यकों का और स्त्रियों का आगे बढ़ना नहीं सुहाता। यही लोग हुसैन की कलाकृतियां जलाते हैं, हबीब तनवीर के नाटकों में बाधा डालते हैं और लेखकों के विरोध को राजनीतिक साज़िश की तरह देखते हैं। फिर यही वे लोग हैं जो अयोध्या में एक भव्य राम मंदिर चाहते हैं, जैश-लश्कर से लेकर आईएस-अल क़ायदा तक की मिसालें देते हुए कहते हैं कि मुसलमान आतंकी हैं। शिकायत करते हैं कि इसी मुल्क में बोलने की इतनी आज़ादी है। बहरहाल, देश में एक गरीब व्यक्ति को जेल में डाल दिया जाये और रसूख वाले व्यक्ति आराम से निकल जाएं तो भयभीत होना चाहिए। किसी किताब में नहीं लिखा कि देशप्रेम क्या होता है और कितनी मात्रा में होता है। राजनीति के लिए धर्म और राष्ट्रवाद तो हथियार रहा है, दुनिया का इतिहास इसका गवाह है। जब बात सत्ता की आती है तो अपराधियों से भी समझौते कर लिए जाते हैं। लोग नासमझी में किसी का एजेंडा पूरा करने लगते हैं। कानून की नज़र में कोई दोषी है तो उसे सज़ा ज़रूर मिले। देखना है, क्या होता है?
संपर्कः राजीव रंजन तिवारी, द्वारा- श्री आरपी मिश्र, ८१-एम, कृष्णा भवन, सहयोग विहार, धरमपुर, गोरखपुर (उत्तर प्रदेश), पिन- २७३००६. फोन- ०८९२२००२००३.