दिल्ली उच्च न्यायालय ने दिल्ली पुलिस में अतिरिक्त पदों पर भर्ती के लिए धन नहीं जारी करने पर गुरुवार को केंद्र सरकार को फटकार लगाई। अदालत ने सवाल उठाया कि अपर्याप्त पुलिस बल कैसे महिलाओं, बच्चों और बुजुर्गो की सुरक्षा सुनिश्चित करेगा। दिल्ली में महिलाओं की सुरक्षा और पुलिस बल बढ़ाने से जुड़ी एक जनहित याचिका पर सुनवाई के दौरान न्यायाधीश बी.डी.अहमद और न्यायाधीश संजीव सचदेवा की पीठ ने दिल्ली पुलिस बल के प्रबंधन के मामले में केंद्र सरकार के रुख पर कई कटाक्ष किए।पीठ ने कहा, "आप तकनीक की बात करते हैं..दिल्ली पुलिस के कितने लोगों के पास बुलेट प्रूफ जैकेट है? आप उन्हें बुनियादी सुविधाएं तक नहीं दे रहे हैं।"
पीठ ने अतिरिक्त सालीसिटर जनरल संजय जैन से मामले की अगली सुनवाई की तारीख 9 फरवरी तक दिल्ली पुलिस में अतिरिक्त भर्तियों पर सरकार का रुख साफ करने को कहा।पीठ ने इस पर सवाल उठाया कि गृह मंत्रालय द्वारा अनुमोदित किए जाने के बावजूद वित्त मंत्रालय के व्यय विभाग ने अतिरिक्त पुलिस कर्मियों की भर्ती के लिए धन क्यों नहीं जारी किया।अदालत ने कहा, "दो मंत्रालय एक-दूसरे से भिड़े हुए हैं। एक कहता है कि अतिरिक्त पुलिस बल चाहिए और दूसरा इसके लिए धन नहीं देता।"दिल्ली पुलिस केंद्रीय गृह मंत्रालय के अधीन है। दिल्ली पुलिस के वकील चेतन शर्मा और शैलेंद्र बाबर ने अदालत से कहा कि पुलिस बल में कम कर्मचारी हैं। जुलाई 2013 के आदेश में अदालत ने 14869 कर्मियों की पुलिस में भर्ती करने का आदेश दिया था।
इस पर 450 करोड़ रुपये खर्च होना था।दिसंबर 2015 में सरकार ने अदालत को बताया कि 4227 पदों का सृजन किया गया है। अतिरिक्त सालीसिटर जनरल जैन ने बताया था कि शेष लगभग 11000 पदों के प्रस्ताव पर सरकार विचार कर रही है। इसे पहले से ही एक उच्च समिति देख रही है।अदालत ने इस बात पर निराशा जताई थी कि उसके कई बार के दोहराने के बावजूद जुलाई 2013 के आदेश पर अमल नहीं हुआ। एमिकस क्यूरी मीरा भाटिया ने कहा था कि सरकार ने उन 44 जगहों पर भी सीसीटीवी नहीं लगाया, जिन्हें दिल्ली पुलिस ने संवेदनशील माना है। उन्होंने इसकी वजह जाननी चाही। दिल्ली सरकार के वरिष्ठ स्थायी अधिवक्ता राहुल मेहरा ने पीठ से कहा था कि दिल्ली सरकार अपराध और जांच के मामलों को अपने हाथ में लेने और इसके लिए कोष देने के लिए तैयार है। उन्होंने कहा था कि केंद्र सरकार कानून एवं व्यवस्था की निगरानी कर सकती है।